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भारत में जीरे की खेती बढ़ रही है, जानिए इसकी खेती कैसे करे ?
Aug 19, 2025
3 Min Read
जीरा, जिसे आमतौर पर मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है, यह भारत में उगाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण मसाला फसल है, जो काली मिर्च के बाद सबसे महत्वपूर्ण है।इस फसल की खेती ज्यादातर राजस्थान और गुजरात में और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से में की जाती है। और उत्तर प्रदेश में रबी की फसल के रूप में खेती की जाती है,यह आयरन, मैंगनीज और विटामिन ई से भरपूर होता है और कई औषधीय गुणों के अलावा पाचन और संबंधित समस्याओं के लिए लाभकारी होता है। इसकी सुगंध और औषधीय गुणों के कारण दुनिया भर में भोजन और पेय पदार्थों में इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। जीरे की फसल एक नकदी फसल है और उचित फसल प्रबंधन प्रथाओं के साथ अच्छा लाभ देती है।
जीरे की खेती के लिए 20 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र जो कम ठंडे और शुष्क जलवायु क्षेत्रों में की अच्छे से की जा सकती है। जहाँ वायुमंडलीय आर्द्रता कम होती है और ठंड कम होती है वहाँ जीरे की खेती करने की सलाह नहीं दी जाती हैं। यह रबी के मौसम में ज्वार, मक्का, मटर और हरे चना जैसी खरीफ फसलों के बाद वर्षा आधारित और सिंचित परिस्थितियों में उगाया जाता है। इसे ज्वार, मक्का, मटर और मूंग जैसी खरीफ फसलों के बाद रबी मौसम में वर्षा आधारित और सिंचित परिस्थितियों में उगाया जाता है।
मोटे बीजों वाली किस्म के लिए आम तौर पर उच्च बीज दर का उपयोग किया जाता है। आम तौर पर, बीज की दर 5 से 8 किग्रा/ एकड़ तक होती है। बुवाई से पहले बीज उपचार जरुरी है इसलिए बीजो को बायो इनोक्यूलैंट जैसे एजोस्पिरिलम या एजोटोबैक्टर 10 ग्राम/किग्रा और ट्राइकोडर्मा विराइड या टी. हर्जियनम 4 ग्राम/किग्रा से उपचारित करना चाहिए जो अंकुरण में सुधार करता है और बीज जनित रोगों की घटना को कम करता है। उपचार के बाद 8 घंटे तक बीजो को छाया में सुखाना चाहिए। बुवाई का इष्टतम समय गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु में नवंबर में 1 से 14 तारीख और राजस्थान और उत्तर प्रदेश में नवंबर के अंतिम सप्ताह में करना चाहिए।
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जीरे की बुआई दो तरीकों से की जाती है,एक पंक्ति में बुवाई और दूसरा हाथ से फैला कर परंपरागत रूप से किसान जीरे की बुआई छिटकवा विधि से करते हैं, लेकिन बीज ड्रिल मशीन से कतार में बुआई करने से बीज का अंकुरण अधिक और फसल बेहतर होती है,और अंतर-कृषि संचालन में भी आसानी होती है। अनुशंसित लाइन से लाइन की दूरी 20 से 25 सेमी और बुआई की गहराई 1.5 से 2 सेमी रखना चाहिए। अधिक गहराई में बुआई करने से बीज के अंकुरण में देरी होती है। बेहतर अंकुरण सुनिश्चित करने के लिए बुआई के समय मिट्टी में अच्छी नमी होनी चाहिए।
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जीरे में फ्यूजेरियम विल्ट (उकठा रोग), पत्ती का झुलसा और पाउडरी फफूंद प्रमुख रोग हैं। झुलसा रोग और पाउडरी फफूंद को नियंत्रित करने के लिए नेटिवो 140 ग्राम/एकड़ 200 लीटर पानी में में मिश्रण बनाकर छिड़काव कर सकते है। इन रोगों के प्रबंधन के लिए, वनस्पति अवस्था, फूल और बीज बनने की अवस्था और बीज विकास और कटाई के चरण के दौरान नेटिवो का छिड़काव करें। किसानों के अनुभव के अनुसार, थ्रिप्स (तैला) और एफिड्स (माहू ) के बेहतर नियंत्रण के लिए क्रमशः जंप और सोलोमन का छिड़काव करें। छिड़काव से पहले, कृपया विभिन्न फसलों में उचित उपयोग के लिए उत्पाद लेबल की जांच करें।
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उर्वरक की आवश्यकता मिट्टी की उर्वरता स्थिति पर निर्भर करती है। अतः मृदा परीक्षण के बाद ही उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। अच्छी मिट्टी की संरचना और मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए फसल की बुआई से दो से तीन सप्ताह पहले प्रति एकड़ 4 से 5 टन अच्छी तरह से विघटित गोबर खाद या 2 से 3 टन कम्पोस्ट की दर से जैविक खाद का उपयोग करने की सिफारिश की जाती है।सामान्य रूप से अनुशंसित खुराक 20 किलो नाइट्रोजन, 10 किलो फास्फोरस और 10 ग्राम पोटेशियम प्रति एकड़ है। बुवाई के समय अनुशंसित नाइट्रोजन का आधा और अनुशंसित फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी खुराक लगाई जाती है, और अनुशंसित नाइट्रोजन का शेष आधा बुवाई के 60 दिनों के बाद शीर्ष ड्रेसिंग के रूप में लगाया जाता है। यदि सिंचाई टपक विधि से कर रहे है तो पानी में घुलनशील उर्वरकों का उपयोग करके उर्वरक देने की सलाह दी जाती है जो पोषक तत्वों के उपयोग की दक्षता बढ़ाने में भी मदद करता है।
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बुवाई के बाद बेहतर अंकुरण प्राप्त करने के लिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए। फिर बीज परिपक्वता अवस्था तक नियमित रूप से 8 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती है।
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कभी-कभी उस क्षेत्र में पाले से जीरे की फसल प्रभावित होती है जहां फसल के मौसम के दौरान तापमान में अचानक गिरावट होती है। प्रारंभिक फूल आने और बीज बनने की अवस्था के दौरान जीरा पाले के प्रति संवेदनशील होता है। ऐसी स्थिति में यदि वातावरण साफ हो, हवा का प्रवाह रुक जाए और तापमान में अचानक गिरावट होने पर पाला पड़ने की आशंका हो तो फसल में सिंचाई करने की सलाह दी जाती है।
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आम तौर पर, जीरे की फसल को उगाई गई किस्म के आधार पर परिपक्वता तक पहुंचने में लगभग 100-130 दिन लगते हैं। भारत के अधिकांश हिस्सों में जहां जीरे की खेती की जाती है, फरवरी से मार्च के अंत तक फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है, फसल जब पीली हो जाए पत्तियां गिर जाए और बीज हल्के भूरे भूरे रंग के हो तब कटाई की जाती है, बीजो को टूटने से बचाने के लिए सुबह-सुबह फसल की कटाई करें। कटाई के बाद, थ्रेशिंग मशीन या हाथ से बीजो को अलग करें । कटाई और थ्रेशिंग के बाद, जीरे को धुप में सुखाए जब तक नमी 8-9% ना हो जाए,अच्छी कृषि पद्धतियों से 400 से 500 किग्रा प्रति एकड़ उन्नत किस्मों के जीरे के बीज प्राप्त किए जा सकते हैं। जीरे की सफाई के लिए वैक्यूम ग्रेविटी सेपरेटर का उपयोग किया जाता है। ठीक से साफ किए गए बीजों को पॉलिथीन बेग या बोरे में संग्रहीत किया जाता है।
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